आज फिर पूरे चाँद की रात आई है
मेरे मन में अजब सी खुमारी छाई है
खुले आकाश के नीचे घास हरी चादर पर बैठ
मै चाँद को देखता रहा या चाँद मुझे???
नही जानता !!!
बस इतना जानता हूँ
कि चांदनी की शीतलता मुझे छूती है
मेरे सारे ताप को शीतल करती है
चाँद मेरे लिए क्या है ???
क्या महबूब का चेहरा है ???
बच्चो का चंदा मामा ????
या फिर मेरा बाल सखा है ???
नही जानता !!!
बस इतना जानता हूँ
कि मेरी जात-पात, धर्म, शिक्षा,योग्यता जाने बिना
उसने मुझे अपनाया है
मुझे हर हाल में गले लगाया है
क्या चाँद को मुझसे प्यार है ???
नही जानता !!!
बस इतना जानता हूँ
कि जब भी दुनिया के उहा-पोह से उबकर
अपने अन्दर और बाहर के अँधेरे से घबराकर
आसमान में देखता हूँ
तो चाँद सारा अँधेरा दूर करने को
मन का कोना -कोना रोशन करने को
मुझे जगमगाने को , दुलराने को
आकाश के किसी कोने में बैठा मुस्कुरा रहा होता है :)))