About Me

My photo
mumbai, maharashtra, India
मिटटी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन ...मेरा परिचय !!! :- हरिवंश राय बच्चन

Thursday, March 17, 2011

इंसान होना काफी नही है क्या???


आज जब किसी नए दोस्त ने 
मुझसे जात पूछी तो 
मन में फिर से यही दर्द घुमर आया  
इंसान होना  काफी नही है क्या????

पहले तो मैंने उसको इधर- उधर घुमाया 
किसी को चौकाने के लिए मजाक में फेंका जाने वाला जुमला दोहराया 
'दादा ने बांग्ला -देशी मुसलमान  से की है शादी 
पिता ने पारसी से 
और मै किसी christian से करूंगा शादी '
ऐसा बतलाया 

chat   पर हो रही थी बाते 
जहा दूसरे का चेहरा हम पढ़ नही पाते 

फिर भी उसके चेहरे पर आये विकृत भाव 
आसानी से पढ़ पाया 
शिष्टाचार के नाते थोड़ी देर चुप रह उसने 
फिर से वही सवाल दूसरे रूप में उठाया 
'title (उपनाम )  क्या है आपका '???

झुंझला गया था मै भीतर से 
पूछ ही बैठा की जात जानना इतना ज़रूरी है क्या 
इंसान होना काफी नही है क्या ???

मेरे बदले तेवर को भांप 
अपने सवालो को दूसरी गैर ज़रूरी कारणों में ढांप 
उसने कहा 
किसी के परिवार के बारे में जानने से उसके बारे में पता चलता है 
उसके व्यक्तित्व का आईना होता है 

मैंने गुस्से में अपने परिवार की वीर गाथा बतलाई 
परदादा से लेकर मेरी पीढ़ी तक 
किसने क्या क्या किया 
सारी जानकारी उसके मुह पर दे मारी 

उसकी जिज्ञासा तो हो गयी शांत 
पर मै अशांत 
मुख क्लांत 
मन में वोही विचार फिर से आया
अपनी इन्ही आँखों से देखा है मैंने 

बाबरी -राम मंदिर विवाद
गोधरा से शुरू हुआ एक वीभत्स उन्म्माद
........................
..........................
जातिगत दंगे फसाद
थोथे अहंकार के पीछे होने वाले रक्त-पात 
........................
.......................
सवर्ण होने का दंभ 
पशुता का आरम्भ 
.......................
......................
कितनी चौपालों पर 
कितनी बार 
जातिगत भेद के आधार पर 
किसी युवक को जिंदा जलाया गया है 
किसी युवती को नंगा नचाया गया है 
जिसका हर बुद्धिजीवी भारतीय 
करता रहा है कड़ा विरोध 
नारे लगाता है 
अखबारों में लेख लिखता है 
coffee shop में बैठ विवेचना करता है 
दोहरी मानसिकता की आलोचना करता है 

किन्तु उदार मानसिकता दिखाने वाले
सर्व-धर्म समभाव में आस्था रखने वाले  
हम भारतीय के भीतर 
क्या वही बर्बर पशु नही रहता है??? 
जो मौका- बेमौका 
पुरानी कसौटी पर इंसान की इंसानियत को परखता है 
और पूछता है 
क्या जात है आपकी ??? 
सच में ...शायद किसी का इंसान होना आज भी नही है काफी 

अनेकता में एकता 
सर्व-धर्म समभाव का प्रवक्ता 
अपना भारत 
कहने को तो अखंड है 
पर इसमें रहने वाले 
हम भारतीय क्या आज भी उस पुरातन मानसिकता से स्वतंत्र हैं ???











Tuesday, March 8, 2011

काश शब्द चिर नूतन हो जाते


काश शब्दों को पंख लग जाते
उन्हें नित  नए अर्थ मिल पाते
काश शब्द सारी सीमायें तोड़ बहुआयामी हो जाते 

काश शब्द 
दिल की गहराई में 
उमर-घुमर रहे लाखो 
संवेदनाओं का मर्म समझ पाते
ठीक ठीक बयां कर पाते 
हर दर्द, हर ख़ुशी 
तन्हाई, बेबसी 
मूकता - वाचालता
लघुता -विशालता 
कटुता -वाक्पटुता 
..............
............... 
एकांत , विश्रांत
क्रोध, ईर्ष्या
प्रेम-विछोह 
वासना-मोह 
.......................
......................
मन की गंगोत्री से फूटने वाली 
असंख्य -अजस्र स्रोत को  खुद में समा पाते 

पर शब्द !!! 
बड़े बेचारे हैं 
नपुंसक हैं
किस्मत के मारे हैं

बंधे -बंधाये अर्थ
जो थोप दिए हैं हमने उसपर
लकीर के फ़कीर की तरह ढोते रहते हैं
नित नई भावनाओं के अथाह सागर को 
उसी पुरानी तराजू में तौलते हैं

हारता हूँ मै हर बार 
कितने मौको पर कितनी बार 
जब भी दिल के समर भूमि में 
चल रही लड़ाई का चित्रण करने बैठा हूँ
तो शब्दों की तलवार कुंद हो जाती है
दो चार दाव में ही छिटक कर टूट जाती है 
अंतस का बिम्ब कहाँ कोरे कागज़ पे आ पाते हैं  
विशाल महल का चित्र बनाते बनाते 
बस भग्नावशेष ही उकेर पाते हैं  

जो जीवन हर पल बदलता है 
पुराना छोड़  नित नूतन होता है 
भला उसकी गाथा 
थिर और मृत साज पर कैसे गाई जा सकती है ???
लाख कोशिशो के बावजूद 
वो सुगंध कहाँ आ पाती है ???


काश शब्द चिर नूतन हो जाते 
काश शब्द दर्पण हो जाते 
हो पाती उनमे भी प्राण प्रतिष्ठा 
जीवन का राग वो भी गुनगुनाते 

तब हर काव्य ऋचाये होती 
हर कहानी सजीव गाथाएं होती 
तब शायद हर शब्द प्राणमय होता  
उनके भीतर भी  कोई जीवन हंसता 

Monday, March 7, 2011

उसका जाना एक पहेली था


उसका जाना एक पहेली था 
ठीक उसके आने की तरह
जो मै कभी सुलझा नही पाया 

रेशमी महीन अदृश्य धागों से 
जो बुना था स्वप्न जाल दोनों ने मिलकर, 
बुनते बुनते 
उलझ कर रह सा गया 

उसका आना वसंत जैसा था 
और जाना पतझड़ की तरह 
पीछे यादो के पीले सूखे पत्ते 
और गर्मियों की नीरस दुपहरी छोड़ गया 

उसका आना बादलो का गुबार था 
जो नेह बरसाकर 
रीत गया 
और जाना कुछ ऐसा था 
कि तन -मन -जीवन को आंसुओ से सींच गया 

उसका आना एक नए जीवन की शुरुआत थी 
उसका जाना 
मानो एक जीवन शुरू होकर बीत गया