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मिटटी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन ...मेरा परिचय !!! :- हरिवंश राय बच्चन

Tuesday, March 8, 2011

काश शब्द चिर नूतन हो जाते


काश शब्दों को पंख लग जाते
उन्हें नित  नए अर्थ मिल पाते
काश शब्द सारी सीमायें तोड़ बहुआयामी हो जाते 

काश शब्द 
दिल की गहराई में 
उमर-घुमर रहे लाखो 
संवेदनाओं का मर्म समझ पाते
ठीक ठीक बयां कर पाते 
हर दर्द, हर ख़ुशी 
तन्हाई, बेबसी 
मूकता - वाचालता
लघुता -विशालता 
कटुता -वाक्पटुता 
..............
............... 
एकांत , विश्रांत
क्रोध, ईर्ष्या
प्रेम-विछोह 
वासना-मोह 
.......................
......................
मन की गंगोत्री से फूटने वाली 
असंख्य -अजस्र स्रोत को  खुद में समा पाते 

पर शब्द !!! 
बड़े बेचारे हैं 
नपुंसक हैं
किस्मत के मारे हैं

बंधे -बंधाये अर्थ
जो थोप दिए हैं हमने उसपर
लकीर के फ़कीर की तरह ढोते रहते हैं
नित नई भावनाओं के अथाह सागर को 
उसी पुरानी तराजू में तौलते हैं

हारता हूँ मै हर बार 
कितने मौको पर कितनी बार 
जब भी दिल के समर भूमि में 
चल रही लड़ाई का चित्रण करने बैठा हूँ
तो शब्दों की तलवार कुंद हो जाती है
दो चार दाव में ही छिटक कर टूट जाती है 
अंतस का बिम्ब कहाँ कोरे कागज़ पे आ पाते हैं  
विशाल महल का चित्र बनाते बनाते 
बस भग्नावशेष ही उकेर पाते हैं  

जो जीवन हर पल बदलता है 
पुराना छोड़  नित नूतन होता है 
भला उसकी गाथा 
थिर और मृत साज पर कैसे गाई जा सकती है ???
लाख कोशिशो के बावजूद 
वो सुगंध कहाँ आ पाती है ???


काश शब्द चिर नूतन हो जाते 
काश शब्द दर्पण हो जाते 
हो पाती उनमे भी प्राण प्रतिष्ठा 
जीवन का राग वो भी गुनगुनाते 

तब हर काव्य ऋचाये होती 
हर कहानी सजीव गाथाएं होती 
तब शायद हर शब्द प्राणमय होता  
उनके भीतर भी  कोई जीवन हंसता 

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