आज जब किसी नए दोस्त ने
मुझसे जात पूछी तो
मन में फिर से यही दर्द घुमर आया
इंसान होना काफी नही है क्या????
पहले तो मैंने उसको इधर- उधर घुमाया
किसी को चौकाने के लिए मजाक में फेंका जाने वाला जुमला दोहराया
'दादा ने बांग्ला -देशी मुसलमान से की है शादी
पिता ने पारसी से
और मै किसी christian से करूंगा शादी '
ऐसा बतलाया
chat पर हो रही थी बाते
जहा दूसरे का चेहरा हम पढ़ नही पाते
फिर भी उसके चेहरे पर आये विकृत भाव
आसानी से पढ़ पाया
शिष्टाचार के नाते थोड़ी देर चुप रह उसने
फिर से वही सवाल दूसरे रूप में उठाया
'title (उपनाम ) क्या है आपका '???
झुंझला गया था मै भीतर से
पूछ ही बैठा की जात जानना इतना ज़रूरी है क्या
इंसान होना काफी नही है क्या ???
मेरे बदले तेवर को भांप
अपने सवालो को दूसरी गैर ज़रूरी कारणों में ढांप
उसने कहा
किसी के परिवार के बारे में जानने से उसके बारे में पता चलता है
उसके व्यक्तित्व का आईना होता है
मैंने गुस्से में अपने परिवार की वीर गाथा बतलाई
परदादा से लेकर मेरी पीढ़ी तक
किसने क्या क्या किया
सारी जानकारी उसके मुह पर दे मारी
उसकी जिज्ञासा तो हो गयी शांत
पर मै अशांत
मुख क्लांत
मन में वोही विचार फिर से आया
अपनी इन्ही आँखों से देखा है मैंने
बाबरी -राम मंदिर विवाद
गोधरा से शुरू हुआ एक वीभत्स उन्म्माद
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जातिगत दंगे फसाद
थोथे अहंकार के पीछे होने वाले रक्त-पात
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सवर्ण होने का दंभ
पशुता का आरम्भ
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कितनी चौपालों पर
कितनी बार
जातिगत भेद के आधार पर
किसी युवक को जिंदा जलाया गया है
किसी युवती को नंगा नचाया गया है
जिसका हर बुद्धिजीवी भारतीय
करता रहा है कड़ा विरोध
नारे लगाता है
अखबारों में लेख लिखता है
coffee shop में बैठ विवेचना करता है
दोहरी मानसिकता की आलोचना करता है
किन्तु उदार मानसिकता दिखाने वाले
सर्व-धर्म समभाव में आस्था रखने वाले
हम भारतीय के भीतर
क्या वही बर्बर पशु नही रहता है???
जो मौका- बेमौका
पुरानी कसौटी पर इंसान की इंसानियत को परखता है
और पूछता है
क्या जात है आपकी ???
सच में ...शायद किसी का इंसान होना आज भी नही है काफी
अनेकता में एकता
सर्व-धर्म समभाव का प्रवक्ता
अपना भारत
कहने को तो अखंड है
पर इसमें रहने वाले
हम भारतीय क्या आज भी उस पुरातन मानसिकता से स्वतंत्र हैं ???
वाह वाह..क्या ओज और तेज गुण से भरी है..बहुत बढ़िया..आपके अंदर की चीख पाठक तक पहुँचाने में सक्षम हुयी आपकी ये कविता..
ReplyDeletethanks a lot sonia :)
ReplyDeleteहम भारतीय आज भी उस पुरातन मानसिकता से खंड-खंड है
ReplyDeleteSudarshan ji,
ReplyDeleteDhanyavaad...
aapka blog padha.... sangeet me aapki gehri ruchi hai... hamari achci jamegi :)))
इंसान होना काफी नही है क्या? बहुत सुन्दर शिक्षाप्रद पोस्ट | धन्यवाद|
ReplyDeletebahut khub dil khush ho gaya yar
ReplyDeletepatil ji aur amit ji ko saadhuvaad !!!
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