About Me
- prashant kumar
- mumbai, maharashtra, India
- मिटटी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन ...मेरा परिचय !!! :- हरिवंश राय बच्चन
Monday, November 29, 2010
Friday, November 19, 2010
गुजारिश
पंख मांगते हैं उड़ने को खुला आकाश
आकाश भी है सामने
लेकिन पंखो की ताक़त क्यों नहीं दे रही मेरा साथ
कुछ भीतर घुमरता है
बहार आने को मचलता है
एक दर्द
एक घुटन
और शायद कुछ भी नहीं
आँख बहा सके ये दर्द
इतना नीर भी नहीं मेरे पास
आवारगी में कितने रास्तों पे भटका हूँ
सौ सौ बार जिया हूँ
और हर बार मरा हूँ
जब भी पूछा है खुद से
क्या पाना है ...और खोने को क्या है मेरे पास?
हक्का बक्का सा खडा रह जाता हूँ
कुछ भी जवाब नहीं होता है मेरे पास
.......................
क्या है जो भीतर सुलगता रहता है ..दर्द बनकर
कच्ची लकडी की तरह धीमे धीमे !
सच में क्या चाहिए मुझे जिंदगी से ?
आखिर क्या है मेरी प्यास ?
ओ ज़िन्दगी
बस इतनी गुजारिश है तुमसे
दे ...जो भी देना है.... दे
लेकिन अधूरा मत ...पूरा दे
चाहे ख़ुशी या संताप
शायद पूर्णता ही है मेरी प्यास
अच्छा लगता है
नीले आसमान को एकटक देखना
उसके अनंत विस्तार के पार देख पाने की कोशिस में थक जाना
अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
लम्बे इन्तेज़ार के बाद आई पहली बारिश में नहाना
मिटटी की सोंधी महक को सांसो में भरना
छोटे छोटे पानी से भरे गड्ढो में कूदना
अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
स्कूल , कॉलेज और समाज के द्वारा सिखाये गए सारे नियमो को टाक पे रख के
कुछ पल को आवारा हो जाना अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
घोडे की तरह रस में दौड़ते दौड़ते थक कर अपने ही दामन में दुबक कर सोना
अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
रिश्ते नाते निभाते निभाते कभी उनकी सीमा से बहार छलांग लगाना
अपनों के लिए बेगाना हो जाना
अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
जागते जागते सो जाने
और कभी गहरी नींद से बेमतलब जाग जाना
अच्छा लगता है अच्छा लगता है
पहचाने रास्तो पे पता पूछते हुए घर पहुंचना
और अनजाने रास्तो पे निडर होकर बरबस चलना
अच्छा लगता है
अछल लगता है
अपनी पहचान लोगो को बताते बताते
खुद से अपनी पहचान पूछना
अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
किसी की आँखों में बस जाना
कभी खुद से आँखे मिलाना कभी आँखे चुराना
कभी जिंदगी के पीछे भागना कभी ठिठक के रुक जाना
कभी खुद पे हँसना,कभी दुनिया पे तरस खाना
इन् सारे गोरख्धधे को दो पल देख पाना
अच्छा लगता है
ज़िन्दगी आना कभी मेरे भी घर
देना मेरे भी दरवाजे पे दस्तक !!!
खोलूँगा द्वार
अपने नयन नीर से तेरे पाँव पखार
ह्रदय में बिठाऊंगा ज़िन्दगी
दो पल बाते करेंगे
होगा एक-दुसरे से साक्षात्कार !!!
ज़िन्दगी आना कभी मेरे भी घर
देना मेरे भी दरवाजे पे दस्तक
..............................
सांसो की साज पे ग़जब का संगीत सुनाऊंगा
करूंगा तेरी बंदगी
हौले से पंखा दुलाउंगा
शबरी की तरह जूठे बेर खिलाउंगा
अपनी पूरी आस्था,और सर्वस्व के साथ तुझ पे अर्पित हो जाऊँगा...
ज़िन्दगी
तुझे पता नहीं की कब से कर रहा हु मै तेरा इंतज़ार
ज़िन्दगी
तुझमे मेरी श्रधा है अपार
अँधेरी रातों में
उजास सुबहों में
असीम पीडा में
जीवन क्रीडा में
परम सुख में
अनंत संताप में
भोग में ..विलास में
हर निश्वास - प्रश्वाश में
कितनी बार कितने रूप में
तुझे बरबस पुकारा है 'जिंदगी'
मृत्यु की शैया से
नवजात की किलकारी तक
एक पुकार सदा से रही है अनवरत
तेरे लिए
ओ ज़िन्दगी आना कभी मेरे भी घर
देना मेरे भी दरवाजे पे दस्तक
खोलूँगा द्वार
अपने नयन नीर से तेरे पाँव पखार
ह्रदय में बिठाऊंगा ज़िन्दगी
दो पल बाते करेंगे
होगा एक-दुसरे से साक्षात्कार !!!
करोड़ो की चीज कौडियों के दाम ले लो....
ले लो,ले लो,ले लो............
वो ईमानदार अपना ईमान बेच रहा है
खरीदोगे?
कौडियों के दाम करोड़ो की चीज !!!
ले लो,ले लो,ले लो....
ऐसा सस्ता सौदा फिर ना मिलेगा...
सच्चा खड़े सोने जैसा 'ईमान' फिर कहाँ बिकेगा
ज्यादा मत सोचो ले लो,ले लो ...........
जो इसको विरासत में मिली है
पुरखो से
जिसकी साज संभाल करता रहा है ये
बरसों से
आज क्योंकर इसको बेच रहा है ???
ना मोल-भावः न बात-चीत !
इतनी महंगी चीज !
ये नाचीज !
पागलपन में फ़ेंक रहा है ???
कुत्ते की सामने रोटी की तरह ???
भूखे भेड़िये के सामने बोटी की तरह ???
पछतायेगा...
एक बार ईमान चला गया तो वापिस कहाँ पायगा...!!!!!!
हम उसकी फिकर में मरे जा रहे हैं
और वो जनाब ईमान की सरेआम बोलिया लगा रहे हैं
ले लो ईमान ले लो
करोड़ो की चीज कौड़ियों में ले लो,,
..............................
और फिर वही हुआ
ईमान कौड़ियों में बिक गया
मुझसे ये सहा न गया
मैंने उसे धर दबोचा
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एकांत में ले जाकर क्रोध से पूछा
'पागल हो गया है तू...तुझे पता नहीं है की तुने क्या बेच दिया?
"खोटा सिक्का "
उसने तुंरत मुझे उत्तर दिया
"खोटा सिक्का,जो आज तक कभी ठीक से न चल पाया
मेरे कर्त्तव्य और अधिकार की मांगे, कभी पूरी न कर पाया
दो पैसे मिले हैं
दो और लगाऊंगा
फिर कही से किसी की घिसी-पिटी "बेईमानी" खरीद लाऊंगा
चांदी सा चमकता सोने सा दमकता खालिश "बेईमानी"
बाज़ार में खूब चलता है
बिना पाँव के सबसे तेज़ दौड़ता है
बला की ताक़त है !
ग़जब की फुर्ती है !
अब देखना मै भी घुड़ दौड़ में शामिल हो जाऊँगा
इस दुनिया की भेड़ - चाल में "ईमानदार" कहलाउंगा ..... "
मेरा आईना
मेरा आईना मुझसे बाते करता है,
मुझे सपने दिखाता है ....
मुझमे जोश भरता है
विश्वास जगाता है..
ना जाने कहाँ से मेरे अन्धेरेपन में ढेर सारा उजाला बटोर लाता है ....
मेरा आईना जगमगाता है!!!
जब कभी दिन भर का थका -मांदा घर आता हूँ
मेरा आईना मुझे बाँहों में थाम लेता है....
जब कभी सताया है इस दुनिया ने....
मेरा आईना मेरे हिस्से का ज़हर पीता है ....
मेरे ज़ख्मो पे मरहम रखता है ....
अपने गोद में सर रखकर,थपकी देकर प्यार से सुलाता है
और मेरे हिस्से का रोना अपनी आँखों से सारी रात रोता है......
क्यों ये आईना मेरा हमदम .........मेरा साया है???
मेरा आईना मुझे इतना प्यार क्यों करता है....???
आखिर ऐसी कौन सी बात है जो वो मुझे इतना सहता है!!!
कभी कुछ नहीं कहता ,
बस बेजुबान जानवर की तरह चुप रहता है ,
और मेरी सेवा में लगा रहता है .....
कई बार क्रोध में
अपमान में,प्रतिशोध में
इर्ष्या और द्वेष में
उत्तेजना और क्लेश में
न जाने कितने ऐसे ही दमित भाव बेबाक इस पर निकाले हैं...
अपनी नाकामी और हार इस पर डाले हैं ....
गलियां दी है...फब्तियां कसी हैं...अनायास अकारण जोर जोर से चिल्लाया है
परन्तु आश्चर्य !!!
असंभव....!!!
इस आईने ने चुपचाप मुस्कुराकर हर बार मुझे स्वीकारा है ... गले से लगाया है.....
कौन है ये आईना ???
क्या रिश्ता है इसका और मेरा ???
और कौन है वो शख्श...जो दीखता है मुझे आईने में....
इतना तो यकीन है कि वो मै तो नहीं
पर हू-ब-हू मेरे जैसा ही क्यों दिखता है !!!
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शायद मेरे सतरंगी सपने
मेरे अरमानो की चिड़िया
मेरी ख्वाबो कि दुनिया
मेरी मन की ऊंची उड़ान
चारो एक दिन कहीं साथ में मिले होंगे....
खेला -कूदा
हंसा - गाया
फिर चारो ने कुछ सोचा
और मिलकर मेरा रूप चुराया
बादल की मिटटी ले
इन्द्रधनुष का रंग ले
बारिश का पानी ले
मेरे जैसा एक तन बनाया
हवा से भी चंचल मन बनाया
और फिर मुझे सबकी नजरो से छुपा दिया
..............................
..............................
वो मेरा साथ लुका छिपी खेलता है ....
सबसे नज़र बचा वो मुझे आईने के पीछे से देखता है.... मुस्कुराता है ....
और कोई आये इससे पहले ही न जाने कहाँ छुप जाता है ...
फिर अकेले में आकर मेरा पास बैठ जाता है
सुख -दुःख की बाते करता है ...
मुझे सराहता है संवारता है....
और मुझसे कहता है की तुम खूबसूरत हो ...सच्चे हो ...अच्छे हो ...
जी हाँ , मेरा आइना मुझसे बाते करता है .....
मेरी तन्हाई में मेरे संग रहता है .......
तुम
तुम सुबह की पहली किरण
तुम सांझ का विश्रांत राग
तुम सावन की पहली बारिश
तुम ह्रदय का असीम अनुराग
तुम किसी फ़कीर की दुआ
किसी की अगाध ममता
किसी की बाल सुलभ बोली
रंगों की जगमग होली
तुम्हारा निर्दोष मन
तुम्हारा भोलापन
और तुम्हारा बचपन
मानो खुदा का परम आर्शीवाद
जिसमे है असीम करुणा
गहन शांति
और अलौकिक प्रकाश
जो करता है समाहित
अपने भीतर
अथाह समुद्र
असंख्य धरा
अपरिमित आकाश
तुम किसी प्यासे की प्यास
तुम किसी की पहली ख्वाहिश
किसी की अंतिम तलाश
मानव मशीन
अनुशाषित भीड़
सभ्य चेहरे
कार्यरत अनवरत भावहीन!!!
गेम सॉफ्टवेर की तरह
HIT THE TARGET
COMPLETE THE MISSION
जीवन का सार
बाकी सब सारहीन !!!
इंसानियत
दोस्ती
प्यार -मुहब्बत
रिश्ते-नाते
भाईचारा
सब कुछ लिया है छीन
मानव मशीन !!!
emmotions बन चुके हैं tools
to play better
to score better
and win better 'THE GAME'
खोज कर देखो
नहीं मिलेगा तुम्हे हाड -मांस, रक्त, मज्जा, स्वेद,
वाट-पित्त से बना
उर्जस्वी,तेजोमयी
स्नेहसिक्त,आलोकित
करुणामयी
आनंदित परमात्मा का अंश
"मानव"
........
मिलेगा
महत्वाकांक्षा की होड़ में
अपनी संपूर्ण त्वरा के साथ
अपनी ताकत और अपनी सर्वोच्चता को स्थापित करने के लिए
नित नए विध्वंसक आविष्कार करता अत्याधुनिक मानव मशीन