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मिटटी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन ...मेरा परिचय !!! :- हरिवंश राय बच्चन

Monday, November 29, 2010


वो कौन सा शगल है,
जिसे तुम प्यार कहती हो !!!
मेरी समझ में नहीं आता

शांत झील कि स्तब्ध नीरवता
एक कंकड़ी तोड़ देती है
मचा देती है हलचल
झील तो फिर भी झील है
अछूती रह जायेगी
जब लहरों का श्रृंग-गर्त
छोर देगा उसका साथ
लेकिन मै ???
मेरे अंतस्थल पर जो तुमने कंकड़ी मारी है
उससे बनने वाला लहर-वृत्त फैलता जा रहा है
उसके श्रृंगो की उंचाई
उसके गर्तो की गहराई
बढती जा रही है
प्रतिपल
एक बवंडर
मेरे अंदर
कुछ भय, कुछ उत्सुकता
कुछ आनंद, कुछ अधीरता
जो कुछ भी मचल रहा है मेरे भीतर
क्या यही प्यार है !!!

Friday, November 19, 2010

गुजारिश


ज़िन्दगी ऐसी क्यों लगती है बदहवास
पंख मांगते हैं उड़ने को खुला आकाश
आकाश भी है सामने
लेकिन पंखो की ताक़त क्यों नहीं दे रही मेरा साथ

कुछ भीतर घुमरता है
बहार आने को मचलता है
एक दर्द
एक घुटन
और शायद कुछ भी नहीं
आँख बहा सके ये दर्द
इतना नीर भी नहीं मेरे पास

आवारगी में कितने रास्तों पे भटका हूँ
सौ सौ बार जिया हूँ
और हर बार मरा हूँ
जब भी पूछा है खुद से
क्या पाना है ...और खोने को क्या है मेरे पास?

हक्का बक्का सा खडा रह जाता हूँ
कुछ भी जवाब नहीं होता है मेरे पास
.......................
क्या है जो भीतर सुलगता रहता है ..दर्द बनकर
कच्ची लकडी की तरह धीमे धीमे !
सच में क्या चाहिए मुझे जिंदगी से ?
आखिर क्या है मेरी प्यास ?
ओ ज़िन्दगी
बस इतनी गुजारिश है तुमसे
दे ...जो भी देना है.... दे
लेकिन अधूरा मत ...पूरा दे
चाहे ख़ुशी या संताप
शायद पूर्णता ही है मेरी प्यास

अच्छा लगता है

अच्छा लगता है
नीले आसमान को एकटक देखना
उसके अनंत विस्तार के पार देख पाने की कोशिस में थक जाना
अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
लम्बे इन्तेज़ार के बाद आई पहली बारिश में नहाना
मिटटी की सोंधी महक को सांसो में भरना
छोटे छोटे पानी से भरे गड्ढो में कूदना
अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
स्कूल , कॉलेज और समाज के द्वारा सिखाये गए सारे नियमो को टाक पे रख के
कुछ पल को आवारा हो जाना अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
घोडे की तरह रस में दौड़ते दौड़ते थक कर अपने ही दामन में दुबक कर सोना
अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
रिश्ते नाते निभाते निभाते कभी उनकी सीमा से बहार छलांग लगाना
अपनों के लिए बेगाना हो जाना
अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
जागते जागते सो जाने
और कभी गहरी नींद से बेमतलब जाग जाना
अच्छा लगता है अच्छा लगता है
पहचाने रास्तो पे पता पूछते हुए घर पहुंचना
और अनजाने रास्तो पे निडर होकर बरबस चलना
अच्छा लगता है
अछल लगता है
अपनी पहचान लोगो को बताते बताते
खुद से अपनी पहचान पूछना
अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
किसी की आँखों में बस जाना
कभी खुद से आँखे मिलाना कभी आँखे चुराना
कभी जिंदगी के पीछे भागना कभी ठिठक के रुक जाना
कभी खुद पे हँसना,कभी दुनिया पे तरस खाना
इन् सारे गोरख्धधे को दो पल देख पाना
अच्छा लगता है

ज़िन्दगी आना कभी मेरे भी घर

जिंदगी आना मेरे भी घर
देना मेरे भी दरवाजे पे दस्तक !!!
खोलूँगा द्वार
अपने नयन नीर से तेरे पाँव पखार
ह्रदय में बिठाऊंगा ज़िन्दगी

दो पल बाते करेंगे
होगा एक-दुसरे से साक्षात्कार !!!


ज़िन्दगी आना कभी मेरे भी घर
देना मेरे भी दरवाजे पे दस्तक
...............................

सांसो की साज पे ग़जब का संगीत सुनाऊंगा
करूंगा तेरी बंदगी
हौले से पंखा दुलाउंगा
शबरी की तरह जूठे बेर खिलाउंगा

अपनी पूरी आस्था,और सर्वस्व के साथ तुझ पे अर्पित हो जाऊँगा...

ज़िन्दगी
तुझे पता नहीं की कब से कर रहा हु मै तेरा इंतज़ार
ज़िन्दगी
तुझमे मेरी श्रधा है अपार

अँधेरी रातों में
उजास सुबहों में
असीम पीडा में
जीवन क्रीडा में
परम सुख में
अनंत संताप में
भोग में ..विलास में
हर निश्वास - प्रश्वाश में
कितनी बार कितने रूप में
तुझे बरबस पुकारा है 'जिंदगी'
मृत्यु की शैया से
नवजात की किलकारी तक
एक पुकार सदा से रही है अनवरत
तेरे लिए

ओ ज़िन्दगी आना कभी मेरे भी घर
देना मेरे भी दरवाजे पे दस्तक
खोलूँगा द्वार
अपने नयन नीर से तेरे पाँव पखार
ह्रदय में बिठाऊंगा ज़िन्दगी

दो पल बाते करेंगे
होगा एक-दुसरे से साक्षात्कार !!!

करोड़ो की चीज कौडियों के दाम ले लो....

करोड़ो की चीज कौडियों के दाम
ले लो,ले लो,ले लो............

वो ईमानदार अपना ईमान बेच रहा है
खरीदोगे?
कौडियों के दाम करोड़ो की चीज !!!
ले लो,ले लो,ले लो....

ऐसा सस्ता सौदा फिर ना मिलेगा...
सच्चा खड़े सोने जैसा 'ईमान' फिर कहाँ बिकेगा
ज्यादा मत सोचो ले लो,ले लो ...........

जो इसको विरासत में मिली है
पुरखो से
जिसकी साज संभाल करता रहा है ये
बरसों से
आज क्योंकर इसको बेच रहा है ???

ना मोल-भावः न बात-चीत !
इतनी महंगी चीज !
ये नाचीज !
पागलपन में फ़ेंक रहा है ???
कुत्ते की सामने रोटी की तरह ???
भूखे भेड़िये के सामने बोटी की तरह ???

पछतायेगा...
एक बार ईमान चला गया तो वापिस कहाँ पायगा...!!!!!!


हम उसकी फिकर में मरे जा रहे हैं
और वो जनाब ईमान की सरेआम बोलिया लगा रहे हैं
ले लो ईमान ले लो
करोड़ो की चीज कौड़ियों में ले लो,,

.............................................................................................................

और फिर वही हुआ
ईमान कौड़ियों में बिक गया
मुझसे ये सहा न गया
मैंने उसे धर दबोचा
@#$%$%^&^%$#@@#$%%^^^
एकांत में ले जाकर क्रोध से पूछा
'पागल हो गया है तू...तुझे पता नहीं है की तुने क्या बेच दिया?
"खोटा सिक्का "
उसने तुंरत मुझे उत्तर दिया

"खोटा सिक्का,जो आज तक कभी ठीक से न चल पाया
मेरे कर्त्तव्य और अधिकार की मांगे, कभी पूरी न कर पाया

दो पैसे मिले हैं
दो और लगाऊंगा
फिर कही से किसी की घिसी-पिटी "बेईमानी" खरीद लाऊंगा

चांदी सा चमकता सोने सा दमकता खालिश "बेईमानी"
बाज़ार में खूब चलता है
बिना पाँव के सबसे तेज़ दौड़ता है
बला की ताक़त है !
ग़जब की फुर्ती है !

अब देखना मै भी घुड़ दौड़ में शामिल हो जाऊँगा
इस दुनिया की भेड़ - चाल में "ईमानदार" कहलाउंगा ..... "

मेरा आईना

मेरा आईना मुझसे कहता है की मै खूबसूरत हूँ..
मेरा आईना मुझसे बाते करता है,
मुझे सपने दिखाता है ....
मुझमे जोश भरता है
विश्वास जगाता है..
ना जाने कहाँ से मेरे अन्धेरेपन में ढेर सारा उजाला बटोर लाता है ....
मेरा आईना जगमगाता है!!!

जब कभी दिन भर का थका -मांदा घर आता हूँ
मेरा आईना मुझे बाँहों में थाम लेता है....
जब कभी सताया है इस दुनिया ने....
मेरा आईना मेरे हिस्से का ज़हर पीता है ....
मेरे ज़ख्मो पे मरहम रखता है ....
अपने गोद में सर रखकर,थपकी देकर प्यार से सुलाता है
और मेरे हिस्से का रोना अपनी आँखों से सारी रात रोता है......
क्यों ये आईना मेरा हमदम .........मेरा साया है???

मेरा आईना मुझे इतना प्यार क्यों करता है....???
आखिर ऐसी कौन सी बात है जो वो मुझे इतना सहता है!!!
कभी कुछ नहीं कहता ,
बस बेजुबान जानवर की तरह चुप रहता है ,
और मेरी सेवा में लगा रहता है .....


कई बार क्रोध में
अपमान में,प्रतिशोध में
इर्ष्या और द्वेष में
उत्तेजना और क्लेश में
न जाने कितने ऐसे ही दमित भाव बेबाक इस पर निकाले हैं...
अपनी नाकामी और हार इस पर डाले हैं ....
गलियां दी है...फब्तियां कसी हैं...अनायास अकारण जोर जोर से चिल्लाया है
परन्तु आश्चर्य !!!
असंभव....!!!
इस आईने ने चुपचाप मुस्कुराकर हर बार मुझे स्वीकारा है ... गले से लगाया है.....

कौन है ये आईना ???
क्या रिश्ता है इसका और मेरा ???
और कौन है वो शख्श...जो दीखता है मुझे आईने में....
इतना तो यकीन है कि वो मै तो नहीं
पर हू-ब-हू मेरे जैसा ही क्यों दिखता है !!!


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शायद मेरे सतरंगी सपने
मेरे अरमानो की चिड़िया
मेरी ख्वाबो कि दुनिया
मेरी मन की ऊंची उड़ान
चारो एक दिन कहीं साथ में मिले होंगे....
खेला -कूदा
हंसा - गाया
फिर चारो ने कुछ सोचा
और मिलकर मेरा रूप चुराया
बादल की मिटटी ले
इन्द्रधनुष का रंग ले
बारिश का पानी ले
मेरे जैसा एक तन बनाया
हवा से भी चंचल मन बनाया
और फिर मुझे सबकी नजरो से छुपा दिया
..........................................
..........................................

वो मेरा साथ लुका छिपी खेलता है ....
सबसे नज़र बचा वो मुझे आईने के पीछे से देखता है.... मुस्कुराता है ....
और कोई आये इससे पहले ही न जाने कहाँ छुप जाता है ...
फिर अकेले में आकर मेरा पास बैठ जाता है
सुख -दुःख की बाते करता है ...
मुझे सराहता है संवारता है....
और मुझसे कहता है की तुम खूबसूरत हो ...सच्चे हो ...अच्छे हो ...
जी हाँ , मेरा आइना मुझसे बाते करता है .....
मेरी तन्हाई में मेरे संग रहता है .......

तुम

तुम सुबह की पहली किरण
तुम सांझ का विश्रांत राग
तुम सावन की पहली बारिश
तुम ह्रदय का असीम अनुराग

तुम किसी फ़कीर की दुआ
किसी की अगाध ममता
किसी की बाल सुलभ बोली
रंगों की जगमग होली

तुम्हारा निर्दोष मन
तुम्हारा भोलापन
और तुम्हारा बचपन
मानो खुदा का परम आर्शीवाद

तुम्हारी आँखों से झांकता अनंत आकाश
जिसमे है असीम करुणा
गहन शांति
और अलौकिक प्रकाश
तुम्हारा विशाल ह्रदय
जो करता है समाहित
अपने भीतर
अथाह समुद्र
असंख्य धरा
अपरिमित आकाश

तुम किसी प्यासे की प्यास
तुम किसी की पहली ख्वाहिश
किसी की अंतिम तलाश

मानव मशीन

मानव मशीन
अनुशाषित भीड़
सभ्य चेहरे
कार्यरत अनवरत भावहीन!!!

गेम सॉफ्टवेर की तरह
HIT THE TARGET
COMPLETE THE MISSION
जीवन का सार
बाकी सब सारहीन !!!

इंसानियत
दोस्ती
प्यार -मुहब्बत
रिश्ते-नाते
भाईचारा
सब कुछ लिया है छीन
मानव मशीन !!!

emmotions बन चुके हैं tools
to play better
to score better
and win better 'THE GAME'

खोज कर देखो
नहीं मिलेगा तुम्हे हाड -मांस, रक्त, मज्जा, स्वेद,
वाट-पित्त से बना
उर्जस्वी,तेजोमयी
स्नेहसिक्त,आलोकित
करुणामयी
आनंदित परमात्मा का अंश
"मानव"
........
मिलेगा
महत्वाकांक्षा की होड़ में
अपनी संपूर्ण त्वरा के साथ
अपनी ताकत और अपनी सर्वोच्चता को स्थापित करने के लिए
नित नए विध्वंसक आविष्कार करता अत्याधुनिक मानव मशीन

ओ सखी

ओ सखी
कब तुम एक अजनबी से इतने खास हो गए
मेरे दिल कि धड़कन और मेरी रूह कि प्यास हो गए

ओ सखी
तुम मेरी ज़िन्दगी बन गए चुपके से
न जाने कब बरबस
मेरे हाथ तुम्हारे लिए दुआ में उठने लगे
मेरे होठों पे तुम्हारी खैरियत के लिए प्रार्थना सजने लगे
पता ही नहीं चला
ओ सखी
कब मेरे सारे सपनो में तुम आने लगे
कब न जाने कब
मेरी जान बने फिर जाने जाना होने लगे
ओ सखी
कब ये जीती जागती दुनिया मेरे लिए वीरानी हो गयी
मेरी जिस्मों- जान पर तुम छाने लगी
ओ सखी
रुको... ज़रा तुम्हारी बलाए तो ले लेने दो
अपनी सारी खुशियाँ तुम्हरे नाम तो करने दो
अपना तन मन जीवन सब कुछ तुमपे वार दूं
ओ सखी ... तुमको अपना सारा प्यार दूं

ओ सखी
दिल करता है इंतज़ार तुम्हारे आने का
पल -पल छिन- छिन
करूंगा मै सारी उम्र इंतज़ार
लेकिन तुम आना
सखी तुम आना
अपनी सारी आस्था का दीपक लेकर
उतारूंगा तेरी आरती
अपने आंसुओ से धोऊंगा तेरे पैर
अपने दिल के आँगन में बिठाऊंगा
फिर तेरी ममतामयी आँचल की छाँव में सर रखकर
आखिरी नींद सो जाऊँगा

चाँद और सूरज

अपने कमरे में बैठा
शाम होते देखता हूँ
बारिश से गीली हो रही हवाओं को ...और मलिन आकाश को देखता हूँ
देखता हूँ पंछियों को लौटते हुए अपने घोसलों में
और सोचता हूँ
कुछ के मुह में भरे होंगे दाने
अपने छोटे छोटे बच्चो के लिए
जो अपनी नन्ही नन्ही चोंचो को फैलाए
ची ची करते हुए इंतज़ार में होंगे अपनी माँ का
उनके इंतज़ार में
उनकी पुकार में
शाम को ढलते हुए देखता हूँ !!!


कभी ट्रेन में सफ़र करते हुए
शाम होते देखता हूँ
दिन भर की आप- धापी में पड़कर
रोजी- रोटी की सारी कसरते कर
५:४० की लोकल की भीड़ में पिसकर
चर्चगेट से विरार का सफ़र करते लोगो के थके चेहरे में
शाम को ढलते देखता हूँ

कभी समुंदर के किनारे रेत पे बैठ कर
शाम होते देखता हूँ
आती- जाती लहरों में
अनहद का गीत सुनता हूँ
सूरज सुर्ख लाल नज़र आता है
मानो दिन भर सूरज जलते- जलते इतना तप जाता है कि
थक हार कर समुंदर की शीतल अथाह गहराई में चुपके से उतर आता है
और रात भर समंदर सूरज को ओढ़े रहता है
उसके सारे ताप को शीतल करता है
सूरज को समादर के लिहाफ में रात भर ठिठुरते देखता हूँ
शाम को ढलते देखता हूँ

कभी घनी हरी वादियों में
शाम को ढलते हुए देखता हूँ
लहलहाते फसल
और दूर कही दिखाई देती कुछ झोपड़ियों के पीछे
लुका छिपी खेलते बच्चो कि शोरगुल
लड़की का बोझा ढोती औरतों के कतार
और बांस कि झुरमुट के पीछे रंभाती गायें
सबसे मिलकर
सुख दुःख बाँट कर धीरे धीरे सूरज को मुस्कुराते देखता hoon
और दूर क्षितिज में
फसल कि चादर उध चैन से सो जाते देखता हूँ

कभी किसी शांत गहरी झील के किनारे
शाम ढलते देखता हूँ
तो हैरान रह जाता हूँ
सूरज ढलता तो है ... फिर खो जाता है
थोड़ी देर बाद ही चाँद बन झील में उतर आता है !!!
अटखेलियाँ करता है मुस्कुराता है !!!

चाँद और सूरज का ये अनोखा रिश्ता मुझे बहुत लुभाता है
और हर शाम मुझे यही याद दिलाता है
कि मेरे भीतर का ताप
मेरी ज्वाला
हर शाम ढलती है
और शांत और उज्जवल चांदनी बन तेरी साँसों में उतरती है
रात भर तेरी बाँहों में चैन कि नींद सोती है
तेरे चेहरे का चाँद मुझे रात भर अपनी चांदनी में नहाता है
तेरी उजास आँखों में मेरा जीवन चैन पाता है
मेरे और तेरे बीच
चाँद और सूरज रोज़ गुनगुनाता है

हर दिन जब भी
शाम को ढलते देखता हूँ
तो मेरे भीतर के सूरज को
तुम्हारी चांदनी कि तलाश में
अपने मन कि परतो में मचलते देखता हूँ