देना मेरे भी दरवाजे पे दस्तक !!!
खोलूँगा द्वार
अपने नयन नीर से तेरे पाँव पखार
ह्रदय में बिठाऊंगा ज़िन्दगी
दो पल बाते करेंगे
होगा एक-दुसरे से साक्षात्कार !!!
ज़िन्दगी आना कभी मेरे भी घर
देना मेरे भी दरवाजे पे दस्तक
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सांसो की साज पे ग़जब का संगीत सुनाऊंगा
करूंगा तेरी बंदगी
हौले से पंखा दुलाउंगा
शबरी की तरह जूठे बेर खिलाउंगा
अपनी पूरी आस्था,और सर्वस्व के साथ तुझ पे अर्पित हो जाऊँगा...
ज़िन्दगी
तुझे पता नहीं की कब से कर रहा हु मै तेरा इंतज़ार
ज़िन्दगी
तुझमे मेरी श्रधा है अपार
अँधेरी रातों में
उजास सुबहों में
असीम पीडा में
जीवन क्रीडा में
परम सुख में
अनंत संताप में
भोग में ..विलास में
हर निश्वास - प्रश्वाश में
कितनी बार कितने रूप में
तुझे बरबस पुकारा है 'जिंदगी'
मृत्यु की शैया से
नवजात की किलकारी तक
एक पुकार सदा से रही है अनवरत
तेरे लिए
ओ ज़िन्दगी आना कभी मेरे भी घर
देना मेरे भी दरवाजे पे दस्तक
खोलूँगा द्वार
अपने नयन नीर से तेरे पाँव पखार
ह्रदय में बिठाऊंगा ज़िन्दगी
दो पल बाते करेंगे
होगा एक-दुसरे से साक्षात्कार !!!
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