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मिटटी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन ...मेरा परिचय !!! :- हरिवंश राय बच्चन

Friday, November 19, 2010

चाँद और सूरज

अपने कमरे में बैठा
शाम होते देखता हूँ
बारिश से गीली हो रही हवाओं को ...और मलिन आकाश को देखता हूँ
देखता हूँ पंछियों को लौटते हुए अपने घोसलों में
और सोचता हूँ
कुछ के मुह में भरे होंगे दाने
अपने छोटे छोटे बच्चो के लिए
जो अपनी नन्ही नन्ही चोंचो को फैलाए
ची ची करते हुए इंतज़ार में होंगे अपनी माँ का
उनके इंतज़ार में
उनकी पुकार में
शाम को ढलते हुए देखता हूँ !!!


कभी ट्रेन में सफ़र करते हुए
शाम होते देखता हूँ
दिन भर की आप- धापी में पड़कर
रोजी- रोटी की सारी कसरते कर
५:४० की लोकल की भीड़ में पिसकर
चर्चगेट से विरार का सफ़र करते लोगो के थके चेहरे में
शाम को ढलते देखता हूँ

कभी समुंदर के किनारे रेत पे बैठ कर
शाम होते देखता हूँ
आती- जाती लहरों में
अनहद का गीत सुनता हूँ
सूरज सुर्ख लाल नज़र आता है
मानो दिन भर सूरज जलते- जलते इतना तप जाता है कि
थक हार कर समुंदर की शीतल अथाह गहराई में चुपके से उतर आता है
और रात भर समंदर सूरज को ओढ़े रहता है
उसके सारे ताप को शीतल करता है
सूरज को समादर के लिहाफ में रात भर ठिठुरते देखता हूँ
शाम को ढलते देखता हूँ

कभी घनी हरी वादियों में
शाम को ढलते हुए देखता हूँ
लहलहाते फसल
और दूर कही दिखाई देती कुछ झोपड़ियों के पीछे
लुका छिपी खेलते बच्चो कि शोरगुल
लड़की का बोझा ढोती औरतों के कतार
और बांस कि झुरमुट के पीछे रंभाती गायें
सबसे मिलकर
सुख दुःख बाँट कर धीरे धीरे सूरज को मुस्कुराते देखता hoon
और दूर क्षितिज में
फसल कि चादर उध चैन से सो जाते देखता हूँ

कभी किसी शांत गहरी झील के किनारे
शाम ढलते देखता हूँ
तो हैरान रह जाता हूँ
सूरज ढलता तो है ... फिर खो जाता है
थोड़ी देर बाद ही चाँद बन झील में उतर आता है !!!
अटखेलियाँ करता है मुस्कुराता है !!!

चाँद और सूरज का ये अनोखा रिश्ता मुझे बहुत लुभाता है
और हर शाम मुझे यही याद दिलाता है
कि मेरे भीतर का ताप
मेरी ज्वाला
हर शाम ढलती है
और शांत और उज्जवल चांदनी बन तेरी साँसों में उतरती है
रात भर तेरी बाँहों में चैन कि नींद सोती है
तेरे चेहरे का चाँद मुझे रात भर अपनी चांदनी में नहाता है
तेरी उजास आँखों में मेरा जीवन चैन पाता है
मेरे और तेरे बीच
चाँद और सूरज रोज़ गुनगुनाता है

हर दिन जब भी
शाम को ढलते देखता हूँ
तो मेरे भीतर के सूरज को
तुम्हारी चांदनी कि तलाश में
अपने मन कि परतो में मचलते देखता हूँ

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