ज़िन्दगी ऐसी क्यों लगती है बदहवास
पंख मांगते हैं उड़ने को खुला आकाश
आकाश भी है सामने
लेकिन पंखो की ताक़त क्यों नहीं दे रही मेरा साथ
कुछ भीतर घुमरता है
बहार आने को मचलता है
एक दर्द
एक घुटन
और शायद कुछ भी नहीं
आँख बहा सके ये दर्द
इतना नीर भी नहीं मेरे पास
आवारगी में कितने रास्तों पे भटका हूँ
सौ सौ बार जिया हूँ
और हर बार मरा हूँ
जब भी पूछा है खुद से
क्या पाना है ...और खोने को क्या है मेरे पास?
हक्का बक्का सा खडा रह जाता हूँ
कुछ भी जवाब नहीं होता है मेरे पास
.......................
क्या है जो भीतर सुलगता रहता है ..दर्द बनकर
कच्ची लकडी की तरह धीमे धीमे !
सच में क्या चाहिए मुझे जिंदगी से ?
आखिर क्या है मेरी प्यास ?
ओ ज़िन्दगी
बस इतनी गुजारिश है तुमसे
दे ...जो भी देना है.... दे
लेकिन अधूरा मत ...पूरा दे
चाहे ख़ुशी या संताप
शायद पूर्णता ही है मेरी प्यास
पंख मांगते हैं उड़ने को खुला आकाश
आकाश भी है सामने
लेकिन पंखो की ताक़त क्यों नहीं दे रही मेरा साथ
कुछ भीतर घुमरता है
बहार आने को मचलता है
एक दर्द
एक घुटन
और शायद कुछ भी नहीं
आँख बहा सके ये दर्द
इतना नीर भी नहीं मेरे पास
आवारगी में कितने रास्तों पे भटका हूँ
सौ सौ बार जिया हूँ
और हर बार मरा हूँ
जब भी पूछा है खुद से
क्या पाना है ...और खोने को क्या है मेरे पास?
हक्का बक्का सा खडा रह जाता हूँ
कुछ भी जवाब नहीं होता है मेरे पास
.......................
क्या है जो भीतर सुलगता रहता है ..दर्द बनकर
कच्ची लकडी की तरह धीमे धीमे !
सच में क्या चाहिए मुझे जिंदगी से ?
आखिर क्या है मेरी प्यास ?
ओ ज़िन्दगी
बस इतनी गुजारिश है तुमसे
दे ...जो भी देना है.... दे
लेकिन अधूरा मत ...पूरा दे
चाहे ख़ुशी या संताप
शायद पूर्णता ही है मेरी प्यास
Wah Prashant!! bahut achchhi likhi hai ye kavita..Last line was the beauty..very good..keep it up...
ReplyDeletehehehe.... yeah... purnta hi shayad hum sabki pyas hai ...
ReplyDeletethanks