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मिटटी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन ...मेरा परिचय !!! :- हरिवंश राय बच्चन

Friday, November 19, 2010

ओ सखी

ओ सखी
कब तुम एक अजनबी से इतने खास हो गए
मेरे दिल कि धड़कन और मेरी रूह कि प्यास हो गए

ओ सखी
तुम मेरी ज़िन्दगी बन गए चुपके से
न जाने कब बरबस
मेरे हाथ तुम्हारे लिए दुआ में उठने लगे
मेरे होठों पे तुम्हारी खैरियत के लिए प्रार्थना सजने लगे
पता ही नहीं चला
ओ सखी
कब मेरे सारे सपनो में तुम आने लगे
कब न जाने कब
मेरी जान बने फिर जाने जाना होने लगे
ओ सखी
कब ये जीती जागती दुनिया मेरे लिए वीरानी हो गयी
मेरी जिस्मों- जान पर तुम छाने लगी
ओ सखी
रुको... ज़रा तुम्हारी बलाए तो ले लेने दो
अपनी सारी खुशियाँ तुम्हरे नाम तो करने दो
अपना तन मन जीवन सब कुछ तुमपे वार दूं
ओ सखी ... तुमको अपना सारा प्यार दूं

ओ सखी
दिल करता है इंतज़ार तुम्हारे आने का
पल -पल छिन- छिन
करूंगा मै सारी उम्र इंतज़ार
लेकिन तुम आना
सखी तुम आना
अपनी सारी आस्था का दीपक लेकर
उतारूंगा तेरी आरती
अपने आंसुओ से धोऊंगा तेरे पैर
अपने दिल के आँगन में बिठाऊंगा
फिर तेरी ममतामयी आँचल की छाँव में सर रखकर
आखिरी नींद सो जाऊँगा

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